जीवन और सार्थकता

सफलता' इंसान को 'तात्कालिक संतुष्टि' देती है जबकि 'सार्थकता' उसे 'दीर्घकालिक संतोष' प्रदान करती है| अत: सफल जीवन की तुलना में सार्थक जीवन जीना अधिक श्रेयस्कर है. मनुष्य जीवन सम्यक दृष्टि में सफलता और सार्थकता के बीच का संतुलित पैमाना है जिससे हम इसकी गुणवत्ता को सरल अर्थों में अपने आवश्यकतानुसार विवेकपूर्ण सामंजस्य से स्पष्ट कर सकते हैं| जीवन को देखने के लिए कोई एकीकृत भाव जनसामान्य पर लागू नहीं किया जा सकता क्योंकि प्रत्येक की विशिष्टता उसके जीवन के बाहरी पक्षों से इतर एकल अनुभव पर आधारित है|अनुभवों के प्रवाह पर वैचारिकता की प्रक्रिया खुद हीं रूप लेती है जो भविष्य का निर्माण करती है|

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